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Kuch unKahi Kuch man kahi कुछ अनकही कुछ मनकही ()

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जो गौर से देखें तो कहानियाँ तो सब तरफ फैली दिखती हैं। जब भी ज़रा सा ढूंढो तो कोई न कोई कहानी अपने आसपास कहीं न कहीं मिल ही जाती है आपका रास्ता देखती हुई। और जो आप उससे मिलो तो ऐसे लगती है जैसे वो कोई अपनी ही बात हो । कोई कहानी छोटी तो कोई कहानी लंबी, कोई हँसती हुई तो कोई दुख से भरी, कोई अपनत्व से भरी हुई तो कोई पराए घर की, किसी कहानी में दर्द में भी मरहम है तो किसी कहानी के सुकून में भी दर्द छिपा होता है जो उससे मिलकर ही जाना जा सकता है।
सो मैं भी तलाशती रहती हूँ नई-नई कहानियाँ अपने आसपास, अपने लोगों के बीच, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, सुबह से शाम की भागदौड़ में, कभी अपनी कहानी तो कभी किसी और की। यूं तो शुरू से कविताएं लिखने में ही रुचि थी पर 2012 में एक प्रतियोगिता के लिए कहानी लिखने का अवसर मिला तो पहली कहानी लिखी ‘स्वाभिमान’ जिसे दिल्ली बैंक स्तर पर द्वितीय पुरस्कार मिला तो उत्साह बढ़ा । अनेक अच्छी प्रतिक्रियाएँ भी मिलीं तो बस सोच लिया कि जब भी अवसर मिलेगा, तब लेखन की इस विधा में भी प्रयास करती रहूँगी ।
आज ये बताते हुए मुझे एक सुखद अनुभूति होती है कि मैं अब तक 35 से अधिक कहानियाँ लिख चुकी हूं जिनमें से कइयों को विभिन्न स्तरों पर पुरस्कार भी मिले हैं तो कुछ अलग-अलग प्रतिष्ठित और प्रमुख पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुईं हैं। मेरे दो संकलनों “अंतर्मन” और “अनुरागी मन” में कविताओं के साथ-साथ कुछ कहानियाँ भी शामिल हैं।

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