SRISHTI (श्रृष्टि) हिंदी काव्य

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लेखक : श्री भगत सिंह विहंस जी ‘विहंस’ जी का रचना संसार जी हाँ मित्रो ! भगत सिंह ‘विहंस’ जी ने अपने नाम को अपने क्रियाकलापों, साहित्य-सृजन के माध्यम से सार्थक किया है। यदि हम इनकी पूर्व में प्रकाशित दो पुस्तकों 1. सपनों का भारत (कहानी संग्रह), 2. पीपल की छाँव में (कविता संग्रह) पर दृष्टि डालें तथा सृष्टि (काव्य संग्रह) आपके हाथों में है । इन सबको पढ़कर आप भी मेरी बात से सहमत होंगे, ऐसी मुझे आशा है। सपनों का भारत (कहानी संग्रह) में 11 कहानियां इस बात का प्रमाण हैं जिनमें माध्यम से ‘विहंस’ जी ऋषि-मुनि, तपस्वियों, देशभक्तों के सपनों का भारत किस प्रकार वास्तविकता की पृष्ठ भूमि पर उतर सकता है, उसकी तड़प भी है और उसके लिए सुझाव भी दिए हैं। कविता संग्रह ‘पीपल की छाँव में’ में इनकी कविताओं में ईश भक्ति है, देशभक्ति और साहित्य प्रेम समाहित है। इस प्रकार अब साहित्य के आकाश में एक और विस्तृत सोच, दूरदृष्टिता के स्वर गुंजायमान करता काव्य लेकर प्रस्तुत हुए हैं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि ‘सृष्टि’ साहित्य जगत में अनूठा नाम करेगी। इसके अतिरिक्त ‘विहंस’ जी की दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाशित होकर हमें पढ़ने को सुलभ होंगी – गुलदस्ता (कहानी संग्रह), परदेसी राँझा (काव्य संग्रह) मनमोहन शर्मा ‘शरण’ पत्रकार व प्रकाशक अपनी बात कोई भी व्यक्ति कभी भी इस सृष्टि का वर्णन नहीं कर सकता – इतनी विशाल असीमित है जिसे कोई भी नहीं जान सकता। मैंने भी एक छोटा सा असफल प्रयास किया है और कुछ भी सृष्टि के बारे में नहीं लिख पाया। जो चीजें दृष्टिगोचर हो रहीं हैं या जिन्हें मैं महसूस कर रहा हूँ उन्हीं के बारे में ही थोड़ा सा लिखने का प्रयास किया हूँ । सृष्टि के नियम अपरिवर्तित हैं जिन्हें मनुष्य चाह कर भी कभी नहीं बदल सकता जैसे कि पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति । पूर्व में सूर्य का उदय होना, पश्चिम में ढल जाना। रात का होना, दिन का होना । पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना । सूर्य, चाँद, सितारों भरा आकाश । हवाओं का चलना । बादलों का बनना, पानी का बरसना । जन्म, मरण ये सब प्राकृतिक घटना है ये सब कार्य सृष्टि के नियमानुसार हो रहें हैं । इसी प्रकार की अनेकों घटनायें हैं जिन्हें हम कभी भी नहीं बदल सकते । इतने बड़े संसार में मनुष्य के अलावा भी बहुत प्राणी निवास करते हैं विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और अनेकों प्रकार के जड़ चेतन हैं सबके – अपने स्वभाव, गुण धर्म एवं उपयोगिता हैं। भले हम इस रहस्य को नहीं समझ पाये हैं लेकिन कोई भी वस्तु यहां बेकार नहीं है जिसका यहाँ उपयोग न हो, यह कितना बड़ा आश्चर्य है । हमेशा से ही प्रकृति के साथ चलने पर एवं उसके नियमों का पालन करने पर हम इस संसार में सुरक्षित रह सकते हैं नियमों को तोड़ने या प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर हमें कई प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ता है। हमें जरूरत है प्रकृति के साथ तारतम्य बिठा कर चलने की, एक सीमा के अन्दर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की। तभी हम सुगमतापूर्वक जीवन जी सकते हैं। इस सृष्टि का नियम है जैसा हम करेंगे वैसा ही फल पायेंगे इस सिद्धांत को कोई नहीं बदल सकता । अतः हमें प्रकृति के नियमों के अनुसार ही चलना है जिससे कि सभी प्राणी स्वस्थ सुन्दर और खुशहाल जीवन जी सकें। मैने जो भी लिखा और प्रयास किया है मुझे उम्मीद है कि पाठकों को पसंद आयेगा । भगत सिंह ‘विहंस’  

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