Nishabd निशब्द

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हृदय में जब भावनाओं का अम्बार एकत्रित हो जाये तो वह बाह्य-अभिव्यक्ति के लिए रास्ते खोजने लगता है। यह अभिव्यक्ति होकर ही रहती है, रोके नहीं रुकती। अभिव्यक्ति के माध्यम भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, परन्तु हृदय की वेदना, पीड़ा, अन्तः तथा बाह्य घटनाओं से उत्पन्न आलोड़न-विलोड़न, प्रकट होकर ही रहता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ है। निजी जीवन में घटित घटनायें तथा समाज में नित्य-प्रति घटित होती घटनाओं ने जब व्याकुल कर दिया तो शब्द स्वयं बोल उठे। रोके नहीं रुके। ऐसा ही कुछ प्रस्तुत पुस्तक में है जो मेरा प्रथम कविता-संकलन है। इससे पूर्व तो शोधपरक एवं आलोचनात्मक रचनाएं ही लिखती रही। आशा है प्रथम रचनात्मक कृति की दृष्टि से देखते हुए त्रुटियों के लिए क्षमा करेंगे। इस यात्रा में सर्वाधिक सहयोग व मार्ग-दर्शन के संकेत मेरी पुत्री अंशुल ने दिये। उसकी सदैव शिकायत रही कि मैं सदैव दुःख की ही अभिव्यक्ति क्यों करती हूँ। इसका उत्तर मैं क्या दूँ? उसे स्वयं ही समझना होगा। मैं आभारी हूँ: मेरी दोनों पुत्रियां संगीता और अंशुल, पुत्र सदृश दामाद लवकेश तथा तीनों नातिनों : ऑलीविया चाँदनी, पंखुरी एवं अनुमिता की, साथ ही मेरी समधिन श्रीमती सरचन्दर साहनी की। इन सबका सहयोग अमूल्य है मेरे लिए। बात अधूरी रह जायेगी यदि अपनी मित्र शकुन्तला शर्मा के प्रति आभार प्रकट न करूँगी जिन्होंने हर क्षण अपने मूल्यवान सुझाव व प्रेरणा देकर मेरा मार्गदर्शन किया। इस पुस्तक के प्रकाशक श्री मनमोहन शर्मा 'अनुराधा प्रकाशन' की मैं आभारी हूँ। धन्यवाद !

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हृदय में जब भावनाओं का अम्बार एकत्रित हो जाये तो वह बाह्य-अभिव्यक्ति के लिए रास्ते खोजने लगता है। यह अभिव्यक्ति होकर ही रहती है, रोके नहीं रुकती। अभिव्यक्ति के माध्यम भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, परन्तु हृदय की वेदना, पीड़ा, अन्तः तथा बाह्य घटनाओं से उत्पन्न आलोड़न-विलोड़न, प्रकट होकर ही रहता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ है। निजी जीवन में घटित घटनायें तथा समाज में नित्य-प्रति घटित होती घटनाओं ने जब व्याकुल कर दिया तो शब्द स्वयं बोल उठे। रोके नहीं रुके। ऐसा ही कुछ प्रस्तुत पुस्तक में है जो मेरा प्रथम कविता-संकलन है। इससे पूर्व तो शोधपरक एवं आलोचनात्मक रचनाएं ही लिखती रही। आशा है प्रथम रचनात्मक कृति की दृष्टि से देखते हुए त्रुटियों के लिए क्षमा करेंगे। इस यात्रा में सर्वाधिक सहयोग व मार्ग-दर्शन के संकेत मेरी पुत्री अंशुल ने दिये। उसकी सदैव शिकायत रही कि मैं सदैव दुःख की ही अभिव्यक्ति क्यों करती हूँ। इसका उत्तर मैं क्या दूँ? उसे स्वयं ही समझना होगा। मैं आभारी हूँ: मेरी दोनों पुत्रियां संगीता और अंशुल, पुत्र सदृश दामाद लवकेश तथा तीनों नातिनों : ऑलीविया चाँदनी, पंखुरी एवं अनुमिता की, साथ ही मेरी समधिन श्रीमती सरचन्दर साहनी की। इन सबका सहयोग अमूल्य है मेरे लिए। बात अधूरी रह जायेगी यदि अपनी मित्र शकुन्तला शर्मा के प्रति आभार प्रकट न करूँगी जिन्होंने हर क्षण अपने मूल्यवान सुझाव व प्रेरणा देकर मेरा मार्गदर्शन किया। इस पुस्तक के प्रकाशक श्री मनमोहन शर्मा ‘अनुराधा प्रकाशन’ की मैं आभारी हूँ। धन्यवाद !

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