Mat Thako Vihag मत थको विहग

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'आशा सहाय' का अनुभूत सत्य, तथ्य और परिवेश के सौन्दर्य का यह आकलन लयबद्ध, छंदबद्ध होकर एक आकर्षक काव्य संग्रह का रूपाकार ले पाया। संघर्षों की संवेदनशील प्रस्तुति सराहनीय है। 80 कविताओं का यह संग्रह विविधता से परिपूर्ण है - 'मत थको विहग...' शीर्षक ही 'मन की तेरी यह अल्प थकन' की ओर संकेत करके जैसे उसके पंखों को हल्के से सहला देती है ज्यों थके पथिक की गति और थके विहग को सतरंगी उड़ान को प्रेरित कर नयी स्फूर्ति का संचार करती है- अन्याय न्याय के महासमर पर - भारत चिन्तन / आत्मशक्ति जिजीविषा, 'दिनमान प्रखर जब होता है' / - पथ के रोड़े पथहीन दिशा सब स्वतः शमित हो जाना अंधेरों का छट जाना... सहज व सौन्दर्यपूर्ण अभिव्यक्ति है। 'दर्द' में दर्द सुख सापेक्ष - किन्तु तुच्छ भावों का तिरोहण । प्रेम का सात्विक प्रसार पा जाता है। कभी वह 'धरा के प्रकम्पन पर' प्रश्न उठाती है... कुछ कविताओं में 'स्वार्थ की बढ़ती कुहा को निज प्रभा से नष्ट कर देने का आग्रह करते हुए - स्वतन्त्रता तू स्वयं प्रकाश का उद्घोष करती है। अन्त में आइने से कहो / गुरु दक्षिणा... अब दो आकाश मुझे... एक टुकड़ा ही सही' एक माला सा मनुहार आशा सहाय के सरल किन्तु परिपक्व-अभिव्यक्ति में निखर उठता है।

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‘आशा सहाय’ का अनुभूत सत्य, तथ्य और परिवेश के सौन्दर्य का यह आकलन लयबद्ध, छंदबद्ध होकर एक आकर्षक काव्य संग्रह का रूपाकार ले पाया। संघर्षों की संवेदनशील प्रस्तुति सराहनीय है। 80 कविताओं का यह संग्रह विविधता से परिपूर्ण है – ‘मत थको विहग…’ शीर्षक ही ‘मन की तेरी यह अल्प थकन’ की ओर संकेत करके जैसे उसके पंखों को हल्के से सहला देती है ज्यों थके पथिक की गति और थके विहग को सतरंगी उड़ान को प्रेरित कर नयी स्फूर्ति का संचार करती है- अन्याय न्याय के महासमर पर – भारत चिन्तन / आत्मशक्ति जिजीविषा, ‘दिनमान प्रखर जब होता है’ / – पथ के रोड़े पथहीन दिशा सब स्वतः शमित हो जाना अंधेरों का छट जाना… सहज व सौन्दर्यपूर्ण अभिव्यक्ति है। ‘दर्द’ में दर्द सुख सापेक्ष – किन्तु तुच्छ भावों का तिरोहण । प्रेम का सात्विक प्रसार पा जाता है। कभी वह ‘धरा के प्रकम्पन पर’ प्रश्न उठाती है… कुछ कविताओं में ‘स्वार्थ की बढ़ती कुहा को निज प्रभा से नष्ट कर देने का आग्रह करते हुए – स्वतन्त्रता तू स्वयं प्रकाश का उद्घोष करती है। अन्त में आइने से कहो / गुरु दक्षिणा… अब दो आकाश मुझे… एक टुकड़ा ही सही’ एक माला सा मनुहार आशा सहाय के सरल किन्तु परिपक्व-अभिव्यक्ति में निखर उठता है।

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