jeeven ki sachaiyaa जीवन की सच्चाइयां

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मेरी श्रीमती प्रेम वर्षा सेठी जी से वर्ष 2015 में प्रथम भेंट हुई थी। विषय था बच्चों के लिए रंग-बिरंगे कलेवर से सजी पुस्तक 'फरारी की सवारी' का प्रकाशन, जिसके लिए आपका अनुराधा प्रकाशन के कार्यालय जनकपुरी में आना हुआ। इसके बाद प्रेम वर्षा सेठी जी की प्रकाशन के अनेक साझा काव्य संकलनों 'काव्य सुगन्ध' 'काव्य कलश' आदि में भी भागीदारी रही। इन साझा संकलनों के लोकार्पण समारोह में भी श्रीमती सेठी जी तथा इनके पतिदेव श्री विनोद सेठी जी से मिलना होता था। दोनों सम्मान सहित प्रेमपूर्वक आते और समारोह में अपनी उपस्थिति से गौरव को बढ़ाते। 20 अगस्त 2017 अन्तर्राष्ट्रीय साझा काव्य संकलन 'काव्य कलश' का लोकार्पण हिन्दी भवन, आई टीओ में सम्पन्न हुआ। देश-विदेश से साहित्यकारों का आना हुआ। श्रीमती तथा श्री विनोद सेठी जी का भी आना हुआ। श्रीमती प्रेमवर्षा सेठी चलने में असहज महसूस कर रही थीं किन्तु इनके उत्साह में तनिक भी कमी नहीं थी। अतिथियों के सम्मान हेतु तथा अपने सम्मान ग्रहण करने के लिए बैत के सहारे आप उठकर मंच तक आईं।

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मेरी श्रीमती प्रेम वर्षा सेठी जी से वर्ष 2015 में प्रथम भेंट हुई थी। विषय था बच्चों के लिए रंग-बिरंगे कलेवर से सजी पुस्तक ‘फरारी की सवारी’ का प्रकाशन, जिसके लिए आपका अनुराधा प्रकाशन के कार्यालय जनकपुरी में आना हुआ। इसके बाद प्रेम वर्षा सेठी जी की प्रकाशन के अनेक साझा काव्य संकलनों ‘काव्य सुगन्ध’ ‘काव्य कलश’ आदि में भी भागीदारी रही। इन साझा संकलनों के लोकार्पण समारोह में भी श्रीमती सेठी जी तथा इनके पतिदेव श्री विनोद सेठी जी से मिलना होता था। दोनों सम्मान सहित प्रेमपूर्वक आते और समारोह में अपनी उपस्थिति से गौरव को बढ़ाते। 20 अगस्त 2017 अन्तर्राष्ट्रीय साझा काव्य संकलन ‘काव्य कलश’ का लोकार्पण हिन्दी भवन, आई टीओ में सम्पन्न हुआ। देश-विदेश से साहित्यकारों का आना हुआ। श्रीमती तथा श्री विनोद सेठी जी का भी आना हुआ। श्रीमती प्रेमवर्षा सेठी चलने में असहज महसूस कर रही थीं किन्तु इनके उत्साह में तनिक भी कमी नहीं थी। अतिथियों के सम्मान हेतु तथा अपने सम्मान ग्रहण करने के लिए बैत के सहारे आप उठकर मंच तक आईं। खुशी-खुशी सभी से विदाई ली और जीवन अपनी गति से दौड़ने लगा। पिछले महीने प्रेमवर्षा जी का फोन आता है और हैलो के बाद गला सँघ जाता है, स्पष्टतः अपने शब्दों को कह नहीं पा रही थीं। मेरे पूछने पर इन्होंने बताया कि 24 अगस्त 2017 को मेरे पतिदेव श्री विनोद सेठी जी हमेशा-हमेशा के लिए शान्त हो गए और अब उनकी गैरमौजूदगी में उनकी यादें ही अब मेरा सहारा है। कुछ कलम यादों को शब्दों में पिरोती है और मैं लिखती जाती हूँ। इस प्रकार ‘जीवन की सच्चाईयाँ’ पुस्तक जिसकी प्रत्येक कविता श्री विनोद जी के प्रति इनके उद्गार है, स्नेह, समर्पण और आदर है। पुस्तक का नाम ही प्रेमवर्षा जी ने ‘जीवन की सच्चाईयाँ’ रखा है जो इनके भाव की पुष्टि करता है। यह सच है कि जो आया है, उसे जाना जरूर है। किन्तु वह साथ, कब तक रह पाता है। यह कोई नहीं जानता। इस संकलन की सभी कविताओं का शीर्षक अलग है, पृष्ठभूमि अलग है किन्तु उन सभी में सेठी जी के साथ बिताए प्रेम, साहौर्दपूर्ण समय की यादें तथा उनसे जुदाई के भाव-कटुता छिप नहीं सके हैं। जब किसी से अपनत्व होता है, अपनापन है, स्नेह और विश्वास है तब उससे कभी-कभी स्नेह में शिकवा भी कर बैठते हैं जो प्रेमवर्षा जी ने भी अपना भाव कलमबद्ध कर ही दिया है – “जीने मरने का साथ, न निभा पाए तुम, रहे भी, पर ऐसा लगे, साथ न रह पाए हम” प्रेम वर्षा जी ने जीवन की इस कटु सच्चाई को माना है, स्वीकारा है और यादों के झरोखे में ज्ञान की रौशनी से झाँकना प्रारंभ कर शब्दों को कविता का रूप देना शुरू कर दिया, जो उनके एकाकी जीवन का सहारा और जीवन की प्रेरणा बन गया है।

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