DARSHAN-E-DARSHAN (दर्शन ए दर्शन) कविता संग्रह

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प्रस्तावना दुरस्त व अच्छी बहरों म अच्छे अशआर से लैस ग़ज़ल संग्रह “दर्शन ए दर्शन”, समर्पण से सराबोर जनाब मनमोहन सिंह भाटिया “दर्द लखनवी” का ग़ज़ल संग्रह “दर्शन ए दर्शन” की बेहतरीन ग़ज़लों का लुफ्त उठाने का मौका मिला। उनकी ग़ज़लों म ज्यादातर मैं और तुम के दरमियान उम्दा तरीके से शब्दों के मोती पिरोये गए है। ग़ज़लों के अशआर म ‘मैं ‘के भीतर बहुत कुछ मुखर है जो ‘तुम’ तक पहुँच कर मुकम्मल बात बता देता है। इश्क हकीकी म लिपटी इन ग़ज़लों म एकाग्रता और अनुभव की परिपक्वता परिलक्षित है। इनम गुरु भक्ति के बिम्ब कदम-कदम पर सघन अनुभूति के साथ उपस्थित है नमूने के तौर पर चंद अशआर पेश है :- “तुझको गीतों म सजाना चाहता हूँ हर ग़ज़ल तुझ पर सुनना चाहता हूँ” XXX “तेरी यादो से अब दिलवर मेरा दिल टूट जाता है मेरे हाथों से फिर प्याला अचानक छूट जाता है” XXX “है दर्द तो भटक रहा उसकी तलाश म क्या जाने किस गली म मेरा मुर्शिद खड़ा मिले” XXX “मिला जब यार अपनी बेखुदी म मुनव्वर हो गया दिल रौशनी से” ग़ज़ल की विषयगत सामग्री अब असीमित है, फिर भी उसमें मुख्यतः करुणा, प्रेम व समर्पण के भाव ही द्युतिमान रहते है। ग़ज़लकार दर्द लखनवी की ग़ज़लों म शत प्रतिशत ऐसी ही सामग्री है। आध्यात्मिक, सामाजिक व व्यवाहरिक जीवन के लिए ऐसी सामग्री वाली ग़ज़लों की नितांत आवश्यकता है। ऐसी गज़लें मानव मूल्यों को उजागर करती है। कहीं वे संदेहप्रद है तो कहीं प्रेरणाप्रद व सुधारवादी दृष्टि की हो जाती है। ऐसी गज़ले म, ‘मैं’ और ‘तुम’ के बीच स्थपित निजत्व व्यष्टिगत बनकर सार्वभौमिक धरातल पकड़ लेता है जहा निजता विलुप्त होकर सर्वोत्मुखी हो जाती है। ग़ज़ल संग्रह के कतिपय अशआर देखें :- ‘थम जाओ यही बस यही मुरसिद की गली है’ ‘हम मंज़िल ए उल्फत की डगर ढूंढ रहे है’ ‘यूं ही हर रिन्द फिदा उस पे नहीं था शायद’ ‘जाम उल्फत का निगाहों से पिलाती होगी’ ‘मिटा कर दूरिया दिल से हम तो साथ रहना है’ ‘सभी मिल कर चले तो हर सफर आसान हो जाये’ ग़ज़लों म दुरुस्त मतले, काफिया रदीफ व रवानी तो होनी ही चाहिए, उनमें अशआर की बहरबद्धता भी एक अनिवार्य अंग है किन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है उनमें अंर्तवस्तु के भीतर आत्यंतिका व भाषाई लोच के साथ संगीतात्मकता का मनोहर पुट भी होना चाहिए। इन अर्थों म भी संग्रह की ग़ज़ल दिलकश और आकर्षक है नमूने के तौर पर चंद अशआर देखे :- “कितना है खुशनसीब ये पंछी जो उड़ रहा अब पर मुझे मिले न मिले हौसला मिले” XXX “वही है ज़िन्दगी लेकिन मेरे मुर्शिद के आते ही महक जाती है जो अब तक रही बेकार तस्वीरे” XXX “तुम सिखाते हो मुझे तैरना, मेरे दिलबर इश्क दरिया है मुझे डूब के मर जाने दो” ग़ज़ल तमाम काव्य रूपों से इतर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने वाला काव्य-रूप है इसके ढर्रे, इसके लहज़े, इसके तेवर, इसकी रंगत और इसकी खुशबू खुद -ब-खुद बता देती है कि वह ग़ज़ल के सिवा कुछ नहीं है। नयेपन के चक्कर म कोई कोई ग़ज़लकार ग़ज़ल की इस पेटट लीक से भटक जाते है जहाँ ग़ज़ल की महक पर बट्टा लग जाता है। हर्ष की बात है कि संग्रह म ऐसा कुछ नहीं है। इसम जुबान का सलीका ग़ज़ल की तयशुदा भाषा म बरकार है। इसम कहन-भंगिमा लगभग वैसी ही है जो बड़ों-बड़ों ने आने है किन्तु मौलिकता का जामा भी अपनी अलग पहचान बनाता है। दर्द लखनवी की यह खुसूसियत काबिले तारीफ है शेर देखे :- “जो कह रहा है हम कुछ हुनर नहीं आते हमारे काम उसे क्यूं नज़र नहीं आते” “उससे मिला के नज़रे खोने लगे है खुद को फिर भी सितारों जैसे हम झिलमिला रहे है” संग्रह की ग़ज़लों म अंदाज़े बयां का बांकपन, मुहावरों की तीक्ष्णता, भावों की गहनता, रिश्तों की खटास व मिठास, समर्पण के स्वर, शब्दों की ताज़गी, सहजता, ज़िन्दगी के सरोकार, संवेदना, रहमोकरम, दर्दोगम और तमाम अन्य मौजू बातें अपनी आभा बिखेरती है कतिपय स्थलों पर कहन वैशिष्ट्य इतनी उम्दा बन पड़ी है कि सराहने के लिए शब्द नहीं है : इस बात के लिए सबूत संग्रह का एक ही शेर काफी है, शेर देखे :- “मर मर के जी रहे है, ये कौन सी कशिश है जीना सीखने वाले, मरना हम सिखा दो” पूरे तौर पर प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह ‘दर्शन ए दर्शन’ गुरुवर संत दर्शन सिंह जी महाराज को समर्पित है। इसम गुरु व ईश विषयक रति स्थाई भाव विभावित होकर भक्ति रास की निष्पत्ति करता है। हिंदी उर्दू मिश्रित सरल व सरस शब्दावली ने खड़ी बोली म रोचकता भर दी है कथ्य म सम्प्रेषणीयता ने प्रसाद व माधुर्य गुण को आप्लावित किया है इतनी उत्तम ग़ज़लकृति के प्रणयन के लिए जनाब मनमोहन सिंह भाटिया दर्द लखनवी को हृदय से साधुवाद । रामदेव लाल ‘विभोर’ महामंत्री काव्य कला संगम लखनऊ 226005 मोबाइल नंबर 09335151188

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