चल के देखेंगे Chal ke dekhenge

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बहुत छोटे से एक गाँव गूजर झिरिया में मेरा जन्म हुआ। धूल-मिट्टी, कीचड़, कंकड़-पत्थर, हवा-आँधी, पेड़-पौधे, कुंआ-तालाब, खेत-खलिहान सबको महसूस करते हुए में बड़ा हुआ। जब से जहन में समझ विकसित हुई अनेक घटनाओं ने मुझे आहत किया। समाज मे नैतिकता की कमी, किसानों की हालत, गरीबों की जिंदगी आदि विषयों को देखा, सुना, भोगा और अपने दिल को जब इन मामलों में डुबोया तो अभिव्यक्ति सृजन बनकर कागज कलम पर उतरती चली गई। जिंदगी बहुत से रास्तों से गुजरी, बहुत सी घटनाओं से दो-चार हुई, बहुत से असली-नकली मुखोटों का दीदार किया, अपने परायों को पहचाना। कभी भगवान को अपने से नाराज महसूस किया तो कभी अपने पर मेहरबान पाया। जिंदगी ने कभी हँसाया तो कभी रुलाया तो कभी बहुत सी जिम्मेदारियां दे दीं। कोई बहुत नजदीक रहकर दुःख देता रहा तो कोई बहुत दूर से खुशियां देता रहा। उपरोक्त सभी हालातों को मैं जिया, महसूस किया, अनुभव किया और यहीं से कविता लिखने का सिलसिला शुरु हो गया साथ ही माँ नर्मदा गाँव के बहुत नजदीक से गुजरती हैं तो उनके किनारे बैठकर चिंतन करने का सौभाग्य मिला। मेरी कर्म भूमि, मां बाराही का गांव, झिरिया माता में रहकर मेरे विचारों को पवित्रता मिली । परिणामतः अपनी प्रथम कृति 'चल के देखेंगे' के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत करने में गौरव और आत्मिक संतोष का अनुभव कर रहा हूं।

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बहुत छोटे से एक गाँव गूजर झिरिया में मेरा जन्म हुआ। धूल-मिट्टी, कीचड़, कंकड़-पत्थर, हवा-आँधी, पेड़-पौधे, कुंआ-तालाब, खेत-खलिहान सबको महसूस करते हुए में बड़ा हुआ। जब से जहन में समझ विकसित हुई अनेक घटनाओं ने मुझे आहत किया। समाज मे नैतिकता की कमी, किसानों की हालत, गरीबों की जिंदगी आदि विषयों को देखा, सुना, भोगा और अपने दिल को जब इन मामलों में डुबोया तो अभिव्यक्ति सृजन बनकर कागज कलम पर उतरती चली गई। जिंदगी बहुत से रास्तों से गुजरी, बहुत सी घटनाओं से दो-चार हुई, बहुत से असली-नकली मुखोटों का दीदार किया, अपने परायों को पहचाना। कभी भगवान को अपने से नाराज महसूस किया तो कभी अपने पर मेहरबान पाया। जिंदगी ने कभी हँसाया तो कभी रुलाया तो कभी बहुत सी जिम्मेदारियां दे दीं। कोई बहुत नजदीक रहकर दुःख देता रहा तो कोई बहुत दूर से खुशियां देता रहा। उपरोक्त सभी हालातों को मैं जिया, महसूस किया, अनुभव किया और यहीं से कविता लिखने का सिलसिला शुरु हो गया साथ ही माँ नर्मदा गाँव के बहुत नजदीक से गुजरती हैं तो उनके किनारे बैठकर चिंतन करने का सौभाग्य मिला। मेरी कर्म भूमि, मां बाराही का गांव, झिरिया माता में रहकर मेरे विचारों को पवित्रता मिली । परिणामतः अपनी प्रथम कृति ‘चल के देखेंगे’ के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत करने में गौरव और आत्मिक संतोष का अनुभव कर रहा हूं।

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