हिन्दी के आधुनिक पौराणिक प्रबन्ध-काव्यों में पात्रों का चरित्र विकास
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प्रस्तुत ग्रंथ शोध-प्रबन्ध है। इसमें यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि हिन्दी के आधुनिक पौराणिक प्रबन्ध-काव्यों में चरित्रों का विकास किन-किन रूपों में हुआ है। विदुषी लेखिका ने मिथकों का सामान्य परिचय प्रस्तुत करते हुए आधुनिक परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में नवीन चेतना का उद्भावन किया है। वाल्मीकि रामायण, महाभारत और पौराणिक वाङ्मय को उपजीव मानकर हिन्दी में जितने भी प्रबन्ध काव्य और मिथकीय ग्रन्थ रचे गए हैं, उन्होंने उन सब पर गहन विचार किया है।
अपने इस शोध-प्रबन्ध में डॉ. सरला सिंह ने प्रायः सभी प्रमुख प्रबन्ध काव्यों का विवेचन करते हुए नवजागरण आन्दोलन की भूमिका की महत्ता और ब्रह्म समाज, आर्य समाज, थियोसॉफिकल सोसायटी, रामकृष्ण मिशन के साथ
स्वामी विवेकानन्द और राजा राममोहन राय के सुधारवादी आन्दोलन, महात्मा गांधी के प्रभाव-पक्ष को भी प्रकारान्तर से उद्घाटित किया है। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन और महात्मा गांधी के नेतृत्व का जनमानस पर पड़ने वाले गहरे प्रभाव को भी पौराणिक ग्रन्थों में इस सूची से रेखांकित किया है कि उसकी उपादेयता का सहजाभास होता है।
वाल्मीकि रामायण और महाभारत – ये दो महाकाव्य विगत ढाई हजार वर्षों से समस्त भारतीय साहित्य के उपजीव्य रहे हैं, बल्कि यह कहना चाहिए कि इन दोनों महाग्रन्थों से प्रेरणा लेकर लिखे गए अनेकानेक हिन्दी महाकाव्यों के
अलावा अन्य कथाकृत्तियाँ भी अपनी अक्षुण्ण अर्थवत्ता लिए पौराणिक पक्षों के प्रति विशेष रुचि जागृत करती रही है और आज भी हमें नयी दृष्टि दिशा देती हैं क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदि काव्यों में एक मिथकीय स्तर होता है और यही शक्ति नयी काव्य-रचना की प्रेरणा का कारण होती है। मिथक जातीय संस्कृति के संग होते हैं।
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