आद्याशक्ति सहस्त्रोष्टोत्तर स्त्रोत (Adyashakti Sahastrotar strot)

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मैं समस्त धर्मप्रेमी बन्धुओं से अनुरोध करता हूं कि हमारी हिन्दू-संस्कृति के वेद, पुराण, उपनिलषद् तथा गीता, रामायणा, महाभारत, श्रीमद्भागवत्, शिव पुराण, देवी भागवत् तथा अन्य ऋतियों, काव्यों, प्रवचनों आदि महाकाव्यों के आधार पर हमें ज्ञात होता है कि हमारे परमपिता परमात्मा जो जड़-चेतन में 'आत्मा' के रूप में व्यापत है उसी की कार्यपद्धति (लीला) को ही 'माया-शक्ति' के नाम से पुकारा जाता है। वही माया, आद्याशक्ति, जगदम्बा, भुवनेश्वरी आदि अनन्त नामों से प्रसिद्ध है। उसके नाम, गुण व कर्मों का वर्णन करना वेद, पुराण एवं उपनिषद् आदि ग्रन्थों तथा देव-दानव एवं मानवों द्वारा मन-कर्म एवं वचन से भी असम्भव है। तब हम मायााग्रस्त एवं कालग्रस्त जीव उसको जानने में क्या समर्थ हो सकते हैं? जो स्वयं को ही नहीं जान पाते हैं। इस माया के गुण, कर्म व प्रपंच को परमात्मा जाने, जो इसका रचयिताा, नियन्ता तथा सर्वश है। हमारे वेद-पुराणों के आधार पर 'मां' का स्थान सर्वोपरि है। इसको आद्याशक्ति आधारभूता एवं भुवनेश्वरी आदि नामों से जाना जाता हैं। पंच रूपों में, इसे 'महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महादेवी (गायत्री) एवं महाशक्ति (पृथ्वी) के नाम से वर्णन किया जाता है। भगवान गणेश जी ने मां को धरती एवं पिता को आकाश मानकर परिक्रमा करके 'अग्रपुज्य' का पद ग्रहण किया है और सिद्ध करके संसार को अवगत कराया है।

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मैं समस्त धर्मप्रेमी बन्धुओं से अनुरोध करता हूं कि हमारी हिन्दू-संस्कृति के वेद, पुराण, उपनिलषद् तथा गीता, रामायणा, महाभारत, श्रीमद्भागवत्, शिव पुराण, देवी भागवत् तथा अन्य ऋतियों, काव्यों, प्रवचनों आदि महाकाव्यों के आधार पर हमें ज्ञात होता है कि हमारे परमपिता परमात्मा जो जड़-चेतन में ‘आत्मा’ के रूप में व्यापत है उसी की कार्यपद्धति (लीला) को ही ‘माया-शक्ति’ के नाम से पुकारा जाता है। वही माया, आद्याशक्ति, जगदम्बा, भुवनेश्वरी आदि अनन्त नामों से प्रसिद्ध है। उसके नाम, गुण व कर्मों का वर्णन करना वेद, पुराण एवं उपनिषद् आदि ग्रन्थों तथा देव-दानव एवं मानवों द्वारा मन-कर्म एवं वचन से भी असम्भव है। तब हम मायााग्रस्त एवं कालग्रस्त जीव उसको जानने में क्या समर्थ हो सकते हैं? जो स्वयं को ही नहीं जान पाते हैं। इस माया के गुण, कर्म व प्रपंच को परमात्मा जाने, जो इसका रचयिताा, नियन्ता तथा सर्वश है। हमारे वेद-पुराणों के आधार पर ‘मां’ का स्थान सर्वोपरि है। इसको आद्याशक्ति आधारभूता एवं भुवनेश्वरी आदि नामों से जाना जाता हैं। पंच रूपों में, इसे ‘महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महादेवी (गायत्री) एवं महाशक्ति (पृथ्वी) के नाम से वर्णन किया जाता है। भगवान गणेश जी ने मां को धरती एवं पिता को आकाश मानकर परिक्रमा करके ‘अग्रपुज्य’ का पद ग्रहण किया है और सिद्ध करके संसार को अवगत कराया है।

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